ज़िन्दगी यूँ ही नही चलती छुप-छुप कर वक्त के आगे,
ज़ीना है अगर ये ज़िन्दगी तौबा ए ज़िगर से, छोड़ दे वक्त को कोसना छोड़ दे किश्मत को कोसना।
ज़ीना है अगर ये ज़िन्दगी तौबा ए ज़िगर से, छोड़ दे वक्त को कोसना छोड़ दे किश्मत को कोसना।
ना मिलेगी यह ज़िन्दगी दोबारा,
यूँ ही वक्त-वक्त पर खुद को कोसना भी छोड़ दे।
यूँ ही वक्त-वक्त पर खुद को कोसना भी छोड़ दे।
वक्त-वक्त पर बहाना बनाना ये आदत अभी गई नही तेरी, जानकर भी अनजान बनना ये भी आदत सी हो गयी तेरी।
सोच जरा परख जरा उन हस्तियों को उन शख्शों को आज गर्व हैं जिन्हें अपनी काबिलियत पर।
मत छुपा कर मत छुपा कर, यूँ खुद को कोसा भी मत कर ।
सोच जरा और सोच जरा वो भी इंसान तू भी इंसान
ज़िन्दगी यूँ ही नही चलती छुप-छुप के वक्त के आगे,
सोच जरा......और सोच जरा.....!
"बृज रावत"
ज़िन्दगी यूँ ही नही चलती छुप-छुप के वक्त के आगे,
सोच जरा......और सोच जरा.....!
"बृज रावत"